दुःख का अधिकार – प्रश्नोत्तर (Class 9 Hindi)

1. प्रश्न: ‘दुःख का अधिकार’ शीर्षक का औचित्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पाठ में लेखक ने समाज में व्याप्त असमानता को दिखाया है। अमीरों को अपने दुःख और संवेदनाएँ व्यक्त करने का पूरा अधिकार मिलता है, जबकि गरीबों को अपने दुःख व्यक्त करने की भी स्वतंत्रता नहीं। इसी विडम्बना को दर्शाने के कारण इसका शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ उचित है।


2. प्रश्न: पाठ में अमीर और गरीब के दुःख की तुलना किस प्रकार की गई है?

उत्तर: अमीर का दुःख समाज के लिए सम्मान का विषय बन जाता है, उनके शोक के समय पूरे समाज में सहानुभूति दिखाई देती है। इसके विपरीत, गरीब का दुःख उपेक्षित रह जाता है। लोग उनके दुःख की चर्चा तक नहीं करते और अक्सर मज़ाक उड़ाते हैं।


3. प्रश्न: लेखक ने अमीरों और गरीबों के दुःख को लेकर समाज के व्यवहार की कौन-सी सच्चाई सामने रखी है?

उत्तर: लेखक बताते हैं कि समाज अमीरों के दुःख को बड़ा मानता है और उनकी हर छोटी तकलीफ पर संवेदना व्यक्त करता है। जबकि गरीब अपने दुःख को व्यक्त भी नहीं कर सकते, क्योंकि समाज उनके दुःख को महत्वहीन समझता है।


4. प्रश्न: उस बूढ़ी औरत की स्थिति का वर्णन कीजिए, जिसका उल्लेख पाठ में किया गया है।

उत्तर: बूढ़ी औरत का बेटा मर गया था, परंतु शोक की अवधि (तेरहवीं) पूरी होने से पहले ही वह मजबूरी में बाज़ार जाती है। समाज उसे देखकर आलोचना करता है कि उसने अभी शोक पूरा भी नहीं किया और वह बाहर निकल गई। यह स्थिति गरीबों की विवशता को दर्शाती है।


5. प्रश्न: इस पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर: लेखक यह संदेश देना चाहता है कि समाज को अमीर और गरीब के दुःख में भेदभाव नहीं करना चाहिए। दुःख हर व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार है और उसे सम्मानपूर्वक स्वीकार करना चाहिए।


6. प्रश्न: ‘दुःख का अधिकार’ पाठ में लेखक की संवेदना किस वर्ग के प्रति अधिक दिखाई देती है?

उत्तर: लेखक की संवेदना गरीब और शोषित वर्ग के प्रति अधिक है, क्योंकि वे दुःख के अधिकार से भी वंचित रहते हैं।


7. प्रश्न: अमीर और गरीब के शोक में समाज की प्रतिक्रिया अलग क्यों होती है?

उत्तर: अमीर का शोक समाज की प्रतिष्ठा से जुड़ा माना जाता है, जबकि गरीब का शोक समाज के लिए महत्वहीन होता है। यही कारण है कि समाज दोनों वर्गों के दुःख पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है।


8. प्रश्न: गरीबों के शोक में समाज कैसा व्यवहार करता है?

उत्तर: गरीबों के शोक को समाज महत्वहीन मानकर उपेक्षा करता है। अक्सर उनके दुःख का मज़ाक उड़ाया जाता है और सहानुभूति के बजाय आलोचना की जाती है।


9. प्रश्न: अमीरों के शोक को समाज किस प्रकार सम्मान देता है?

उत्तर: अमीरों के शोक में लोग उनकी संवेदना साझा करने पहुँचते हैं, उनके दुःख की चर्चा अखबारों और सभाओं तक में होती है। अमीरों का दुःख सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन जाता है।


10. प्रश्न: गरीबों के दुःख को व्यक्त करने की स्थिति कैसी होती है?

उत्तर: गरीब लोग अपने दुःख को खुलकर व्यक्त भी नहीं कर पाते। उनकी मजबूरियाँ उन्हें जल्दी काम पर जाने को विवश करती हैं, जिससे समाज उन्हें असंवेदनशील समझकर आलोचना करता है।


11. प्रश्न: लेखक ने समाज की कौन-सी विषमता को उजागर किया है?

उत्तर: लेखक ने अमीर और गरीब के दुःख के प्रति समाज के असमान व्यवहार को उजागर किया है। समाज अमीरों के दुःख को बड़ा और गरीबों के दुःख को छोटा मानता है।


12. प्रश्न: बूढ़ी औरत को देखकर लोगों ने क्या कहा?

उत्तर: लोगों ने कहा कि उसके बेटे की तेरहवीं भी पूरी नहीं हुई और वह बाजार निकल आई। यह समाज की कठोर और असंवेदनशील सोच को दिखाता है।


13. प्रश्न: लेखक के अनुसार दुःख हर व्यक्ति का ‘अधिकार’ क्यों है?

उत्तर: क्योंकि दुःख मानव जीवन का स्वाभाविक अनुभव है। अमीर-गरीब सभी को समान रूप से दुःख अनुभव करने और व्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए।


14. प्रश्न: लेखक ने किस वर्ग की विडम्बना पर अधिक प्रकाश डाला है और क्यों?

उत्तर: लेखक ने गरीब वर्ग की विडम्बना पर अधिक प्रकाश डाला है क्योंकि उन्हें न केवल सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, बल्कि दुःख व्यक्त करने का भी अधिकार उनसे छीन लिया जाता है।


15. प्रश्न: इस पाठ से हमें समाज के किस व्यवहार की आलोचना करनी चाहिए?

उत्तर: हमें उस व्यवहार की आलोचना करनी चाहिए जिसमें अमीरों के दुःख को बढ़ा-चढ़ाकर सम्मानित किया जाता है और गरीबों के दुःख की उपेक्षा की जाती है।


16. प्रश्न: ‘दुःख का अधिकार’ पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: इस पाठ का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त भेदभाव को उजागर करना और यह संदेश देना है कि हर व्यक्ति को समान रूप से दुःख व्यक्त करने का अधिकार है।


17. प्रश्न: पाठ का संदेश आज के समाज में किस प्रकार प्रासंगिक है?

उत्तर: आज भी समाज में अमीर-गरीब का भेद मौजूद है। यह पाठ हमें सिखाता है कि हमें संवेदनशील बनकर सभी के दुःख को समान दृष्टि से स्वीकार करना चाहिए।


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